भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मूल अधिकार के रूप में दी गई है ।इसी अधिकार का उपयोग समाचार पत्र और स्वतंत्र पत्रकार भी करते हैं। प्रेस को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा गया है ।सरकार के तीन स्तंभ हैं व्यवस्थापिका ,कार्यपालिका और न्यायपालिका इन चारों स्तंभों में संतुलन आवश्यक है ।असंतुलन की अवस्था में लोकतंत्र का भवन धराशाई हो सकता है ।प्रेस को चौथा स्तंभ होने के साथ-साथ मैं इसे लोकतंत्र की आधारशिला भी माना जाता है ।क्योंकि पत्रकार परोक्ष रूप से सरकार की नीतियों को प्रभावित करता है ।सामाजिक सुधार में भी पत्रकार का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। वह जन भावनाओं को प्रकाशित करके सामाजिक हितों के प्रति कार्य करता है ।सरकार की गलत नीतियों का विरोध भी पत्रकार ही करता है ।पत्रकार स्थानीय, प्रदेशीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय नीतियों को समान रूप से प्रभावित करता है ।पत्रकार का दायित्व अत्यधिक महत्व इसलिए है पत्रकार को अपने दायित्व का निर्वहन ईमानदारी ,निर्भयता, निष्पक्षता और अभेद की नीति से करना चाहिए ।पत्रकार को जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद, संप्रदायवाद और धर्म सापेक्षता से बचने की बहुत आवश्यकता है। किसी वाद के चक्कर में पड़कर पत्रकार अपने दायित्वों का निर्वाहन कभी नहीं कर सकता। इसलिए पत्रकार की मानसिकता तटस्थ होनी चाहिए। लेकिन कभी-कभी देखने में आता है कि पत्रकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोटकर प्रीत पत्रकारिता के चक्कर में पड़ जाता है। जो स्वस्थ परंपरा नहीं कही जा सकती ।कुछ पत्रकार भाई अपने को अधिक प्रकाशित करने के लोभ में फंसकर अपने सह पत्रकारों का ही खंडन मंडन करते हैं ।सनसनीखेज शीर्षक छाप कर संबंधित व्यक्ति से काला धन वसूलने का प्रयास करते हैं। व्यक्तिगत रूप से चरित्रहीन ,चरित्र हनन करने में भी नहीं हिचकते। सत्य समाचार को तोड़ मरोड़ कर छापते हैं। अपने हितैषी किंतु भ्रष्ट अधिकारियों को अप्रत्याशित रूप से हीरो बना देते हैं ।और चरित्रवान व्यक्ति को चरित्र हीनता के गड्ढे में ढकेल देते हैं ।अपना अस्तित्व स्थापित करने के लिए अपने को विशिष्ट पत्रकार प्रदर्शित करने के लिए वे तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं ।क्या इस तरह से कार्य किसी पत्रकार की छवि को उज्जवल कर सकते हैं। कभी नहीं ,यह चौथा स्तंभ यदि अपने वास्तविक दायित्व को भूल गया तो लोकतंत्र डगमगा जाएगा। इसीलिए देश की स्थिरता, अखंडता, एकता और स्थायित्व तथा समाज की कल्याणकारी नीतियों को प्रश्नय दिखाने के लिए पत्रकार को अपना उत्तरदायित्व समझने की आवश्यकता है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पत्रकार ,सम्पादकी -लोक-लाज साप्ताहिक 5दिसम्बर1988