लखनऊ में मड़ियाव थाने से समाचार प्राप्ति में विलंब।

 


लखनऊ:- यूं तो उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में अपराधी बेलगाम घूम रहे हैं। जिसका खामियाजा आए दिन राजधानी की जनता को भुगतना पड़ रहा है। चैन स्क्रैचिंग ,लूट ,चोरी ,हत्या यह आम बात है ।धीरे-धीरे जनता इसकी आदी हो रही है ।कारण एकमात्र है ।पुलिस विभाग में ऊपर बैठे कानून के रखवाले को राजधानी के जिम्मेदारों में अब तक कोई कमी ना दिखाई देना । अगर राजधानी का 2 माह का अपराधिक रिकॉर्ड देखा जाए तो आंखें चकाचौंध हो जाएंगी। परंतु खैर यह तो कानून के रखवालों की बात अलग  जो प्रदेश की कानून व्यवस्था के जिम्मेदार हैं। राजधानी के मड़ियाव थाना जो राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़ा और फैजाबाद व कानपुर बाईपास पर स्थित है। बॉर्डर का थाना होने के नाते यह अपराधियों की शरण स्थली होने के कारण अति संवेदनशील एरिया भी है ।कुछ माह पूर्व पधारे मड़ियाव इस्पेक्टर की कुशल कार्यशैली से सब कुछ नियंत्रित है ।परंतु पत्रकारों का फोन ना उठना और थाने पर घटना की सही जानकारी में कन्नी काटने के कारण मड़ियाव थाने से समाचार प्राप्ति में विलंब  होता है। कुछ दिन पूर्व मड़ियाव थाना अंतर्गत एक नौजवान की हत्या के बारे में और भिठौली खुर्द गांव के पास जुआरियों की धरपकड़ की जानकारी के लिए मड़ियाव इस्पेक्टर को फोन करने पर फोन नहीं उठाने के कारण खबर संकलन हेतु थाने जाना पड़ा। जिस पर कुर्सी पर बैठा दरोगा अंदर जाने का इशारा करता है। तो अंदर बैठा दीवान बाहर की ओर, ऐसी स्थिति में एक पत्रकार को खबर संकलन में दुश्वार  का सामना करना पड़ता है। हद तो तब है जब जानकारी मांगने पर दीवान या दरोगा द्वारा यह पूछा जाता है कि ,आप कौन। थाने पर मौजूद दरोगा मुंशी क्षेत्रीय पत्रकारों को तक नहीं जानते ऐसी स्थिति में मध्यस्थता कैसे हो सकती है ।आशा करता हूं कि जिम्मेदारों की नींद टूट जाए और पत्रकारों को छोटे-बड़े के नजरिए से ना देखा जाए ।पत्रकार मात्र एक पत्रकार होता है।


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