शासन, प्रशासन और सूचना विभाग की खामोशी भी इन्हें सक्रिय करने में भागीदार।
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मो०ताहिर अहमद वारसी
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उत्तर प्रदेश सहित पूरे भारत में सोशल मीडिया का वह दौर पिछले लगभग 2 से 3 वर्षों में चल रहा है। इसमें समाज को एक नई पहल तो दी है। परंतु इसके साथ-साथ सोशल मीडिया का दुरुपयोग भी भरपूर हुआ है। जिसमें सबसे ज्यादा सोशल मीडिया पर दुरुपयोग देश की एकता अखंडता को चोट पहुंचाने के लिए देश में पनप रही संप्रदायिक ताकतों ने भी इसका भरपूर उपयोग किया है ।जो देश और समाज दोनों के लिए घातक सिद्ध हुआ। आज देश का वातावरण धर्म जाति समुदाय के नाम पर कई भागों में बढ़ चुका है। जिसका सीधा लाभ इन मुद्दों पर राजनीति करने वाले नेताओं की कुर्सियां दिन दूनी रात चौगुनी तेजी से बढ़ रही है ।दूसरी ओर इसी सोशल मीडिया ने जहां एक और बड़े बड़े खुलासे किए और जमीनी मुद्दों को तूल पकड़ा कर शासन, प्रशासन तक पहुंचाने का बड़ा काम किया है ।वही बेरोजगारी से जन्मे पत्रकारों ने भी व्हाट्सएप समूह, फेसबुक, ट्विटर पर समूह बनाकर इसका भरपूर दुरुपयोग किया है। एक बार हाथ पैर जोड़ किसी सँम्पादक से या लालच देकर किसी सँम्पादक के द्वारा पत्रकारिता सीखने के बहाने कार्ड बनवा कर अपने मोबाइल पर दो-चार मीडिया समूह बना कर थाने या सरकारी संस्थानों में पैठ बना। आसानी से अपनी दलाली चमकाने वालों की संख्या आज पत्रकारों की संख्या से कई गुना बढ़ चुकी है। काम ना होने की स्थिति में अधिकारियों की कोई न कोई कमी पकड़ या वीडियो बना ग्रुप में सार्वजनिक कर दबाव बनाने का प्रयास आम चलन में है। ऐसे लोगों की संख्या के हिसाब से एक-एक क्षेत्र में कई कई पत्रकारों के गैंग बन गए हैं। जो थाना कचहरी हुआ सरकारी संस्थानों में अपनी पैठ मजबूत कर दिन भर दलाली करते रहते हैं। जिसमें निष्पक्ष पत्रकारों को इनके वर्चस्व के आगे शासन, प्रशासन के लोगों ने भी घास डालना बंद कर दिया है। बढ़ते भ्रष्टाचारियों ने भी इनसे मित्रता कर अपनी छवि को ईमानदार, कर्मठ और समाजसेवी बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है ।जिस सरकारी कार्यालय में जिस दलाल की दलाली चमकती है ।उस कार्यालय में अगर कोई दूसरा पत्रकार भी जानकारी लेने का प्रयास करें तो कर्मचारी उसे मुंह तक नहीं लगाते ।जिसके कारण देश व प्रदेश में दिन पर दिन दो चार बड़े समाचार पत्रों को छोड़कर छोटे समाचार पत्र व संपादकों की बहुत बुरी स्थिति हो गई है ।शासन व प्रशासन सबकुछ जानकर अनजान बन भ्रष्टाचारियों और ऐसे चमचों और दलालों को बढ़ावा दे रहा है। जबकि होना तो यह चाहिए कि मात्र सँम्पादक ग्रुप संचालक हो या जिसे सँम्पादक लिखित ग्रुप संचालक की नियुक्ति दे वह ग्रुप का संचालन करें ।परंतु ऐसा कुछ नहीं है। क्योंकि इतिहास के पन्नों में दर्ज इतिहास में जब भी देश में किसी भ्रष्टाचारी पर गाज गिरी तो उसके पीछे कोई न कोई पत्रकार का हाथ रहा है ।यह शासन प्रशासन खूब जानता है ।इसी कारण निष्पक्ष पत्रकारिता को खत्म करने के लिए चमचो और दलालों को पत्रकारिता जगत में घुसेड़ कर पत्रकारिता को हानि पहुंचाने की सोची समझी रणनीति पर कार्य चल रहा है। जबकि पत्रकार होने के लिए कम से कम खबर और किसी समाचार पत्र या पत्रिका या रजिस्टर्ड वैव या पोर्टल का होना अनिवार्य है। परंतु ऐसा जाहिल चमचों और दलालों ने व्हाट्सएप ग्रुप में दो-चार लाइन लिख या फोटो चला या किसी पत्रकार द्वारा लिखी खबर को तुरंत कॉपी कर उसे अपने नाम से सोशल मीडिया पर चलाने को ही पत्रकारिता समझ बैठे है। इनकी संख्या के अनुपात से अगर किसी चमचे या दलाल के साथ कोई ईमानदार कर्मचारी या सभ्य नागरिक नागरिक अभद्र व्यवहार करें या इनका विरोध करें तो इनके सक्रिय गैंग तुरंत एक हो कर बड़ी संख्या में एकत्रित हो उस पर दबाव बना कर माफी मांगने या मुकदमा लिखवाने का दबाव बनाने में भी नहीं चूकते। भ्रष्टाचारियों द्वारा ऐसे सोशल मीडिया पत्रकारों को जन्म देकर पत्रकारिता को समाप्त करने या कहें कि समाचार पत्रों को समाप्त करने का प्रयास किया है ।उसमें शासन प्रशासन की चुप्पी और सूचना विभाग की लापरवाही का भी भरपूर योगदान है ।क्योंकि आज भी निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारों से भ्रष्टाचारी थर-थर कांपते हैं ।धीरे-धीरे यह व्हाट्सएप ,फेसबुक ,टि्वटर के तथाकथित पत्रकार जिनकी आय का कोई दूसरा साधन भी नहीं है। परंतु यह करोड़पति हो रहे हैं और जो ईमानदार समाचार पत्र संचालक व पत्रकार हैं ।वह या तो पत्रकारिता जगत से संयास ले रहे हैं या दूसरे कामों की ओर अग्रसर हो रहे हैं। कुल मिलाकर व्हाट्सएप व सोशल मीडिया के तथाकथित पत्रकारों ने अपने आगे निष्पक्ष पत्रकारिता को समाप्त करने की पूरी तैयारी शासन प्रशासन की उदासीनता से कर रखी है ।पत्रकारों के लिए व्हाट्सएप के फर्जी पत्रकार जी का जंजाल साबित हो रहे हैं
निष्पक्ष पत्रकारिता को समाप्त करने के लिए भ्रष्टाचारियों ने पैदा किए व्हाट्सएप ,फेसबुक, ट्विटर दलाल।