स्वतंत्र पत्रकार स्व0महमूद बख्श वारसी, छायांकन-मो0ताहिर अहमद वारसी
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मिशन, मिशन, मिशन, रहा होगा कभी यह मिशन लेकिन अब तो मात्र एक कहावत ही सिद्ध हो रहा है ।यह मिशन शब्द हां यह सच है। सन 18 60 में अवश्य इस मिशन को एक मिशन मानकर भारत में अमीरात ए अखबार फारसी भाषा में कोलकाता से प्रकाशित हुआ था ।तब वास्तव में इस मिशन से जुड़ने वाले लोग त्यागी ही थे। जो हस्तलिखित अमीरात ए अखबार का प्रकाशन करते थे ।इसके बाद तो पत्रकारिता का मिशन धीरे धीरे स्वतंत्रता की लड़ाई में अपनी चरम सीमा पार कर गया ।जिसमें दर्जनों समाचार पत्रों को गोरों ने सील कर मिशन से जुड़े समाचार पत्र संपादकों से लेकर मालिक मुद्रक, प्रकाशक ,संवाद सूत्र व संवाददाताओं को कैद पर अनेकों बार जेल भेजा। लेकिन मिशन के सच्चे वफादार हजारों पत्रकार व साहित्यकारों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और भारत माता को आजादी दिलाने के लिए फक्र के साथ अपने प्राणों की आहुति दे दी। इसके अलावा भी आजादी के तमाम दीवानों ने तन, मन, धन सहित प्रत्येक पग पर हर किस्म का सहयोग प्रदान कर देश को आजाद कराया ।आजादी के बाद देश के राजनेताओं ने देश की राज गद्दी संभाली और पत्रकारों ने कलम जो अपने जीवन को समाज सेवा का लक्ष्य मानकर आज भी पत्रकारिता को मुख्य मानते हुए प्रत्येक समय पर समस्त प्रकार की सराहनीय भूमिका निभा रहे हैं ।जिसमें 90% ग्रामीण आंचल के पत्रकारों ने पत्रकारिता को मिशन मानते हुए अब तक जनहित में निष्पक्ष रूप से अपना संपूर्ण योगदान दिया है। हां आजादी के बाद जब कांग्रेसी शासन ने जमीदारी प्रथा को समाप्त किया तो सामंतवादी तथा तथाकथित राजनैतिक सफेदपोशो ने पत्रकारिता जैसे साफ-सुथरे मिशन को हथियाना प्रारंभ कर दिया ।फल स्वरूप पत्रकारिता में आज 80% सामर्थ वादी तथा घिनौनी राजनीति करने वाले खिसियानी सामंतवाददियों ने उस पर अपना कब्जा जमा लिया है। जिसमें बड़े-बड़े समाचार पत्रों का प्रकाशन कर जदीद टेक्नोलॉजी के माध्यम से लूटपाट ,नोच-घसोट की नियति से इस मिशन को बर्बादी के कगार पर पहुंचा दिया है। आजादी के बाद से ऐसे हजारों समाचार पत्र पूंजीवादी सामंतवादी ओं ने प्रकाशित तो किए लेकिन जब उनकी सच्चाई सामने उभर कर आई तो जागरूक जनता ने उन्हें नकार कर समाप्त कर दिया ।परंतु आज भी ऐसे बड़े समाचार पत्र अपने देश भारत में संचालित हैं जो मात्र स्वयं ही मियां मिट्ठू बने बैठे हैं। जिनमें कुछ मजबूर बेसहारा बेबस व गरीब पत्रकार सब कुछ जानते हुए भी अपनी रोजी रोटी के चक्कर में जुड़े हुए हैं ।यही कारण है ग्रामीण आंचल के पत्रकारों का आज भी पत्रकारिता के मिशन को कार्यरत रखने का और जान-माल, भाई, भतीजे व परिवार जनों से हाथ धोने का पत्रकारिता जो अति पवित्र कार्य है ।मैं आज के समय में खासकर शहरी क्षेत्र के पत्रकारों पर भी पूंजीवादी व सामंतवादी धीरे धीरे बड़े पैमाने पर छा गए हैं ।और निष्पक्ष पत्रकारिता को बलाए- ताक पर रखकर स्वयं शहरी राजनीति चमकाने के लिए शहरों में अधिकारियों ,कर्मचारियों पर अपना रौब गालिब कर सामंतवादी विचारधारा और उनके मिशन को बढ़ावा देने में भरपूर सहयोग प्रदान कर रहे हैं। देश की सबसे अधिक जनता ग्रामीण क्षेत्र में ही निवास करती है। जिस में कठिनाइयों का सबसे अधिक सामना प्रत्येक पल पर आए दिन उसे ही करना पड़ता है। रिश्वतखोर भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी इन भोले-भाले ग्रामीण नागरिकों को बेवकूफ बनाकर अवैध धन की उगाही जैसा घिनौना कार्य तो करते ही हैं ।साथ ही इनको असंवैधानिक तरीके से पीड़ित व परेशान भी करते हैं। जबकि सच्चाई तो यह है पत्रकारों और अधिकारियों ,कर्मचारियों को देश की समस्त जनता को न्याय और सही सुविधाएं उपलब्ध कराने का ही उद्देश्य होना चाहिए। धरती से जुड़े हुए लोगों की समस्याओं का निदान जनता और शासन प्रशासन मध्यस्थता पत्रकारिता के माध्यम से निष्पक्ष समाचार लिख कर करनी चाहिए। परंतु अब ऐसा इसलिए संभव नहीं है। क्योंकि पत्रकारिता अब मिशन नहीं बल्कि अपनी राजनीतिक व दलाली की छवि को निखारने के उद्देश्य से अधिकारियों की काली करतूतों को नजरअंदाज कर जनता की कठिनाइयों को अनदेखी कर लोगों की कठिनाइयों को सामंतवादी पत्रकार नकार रहे हैं। ऐसे पत्रकारों की संख्या अब अधिकाधिक है ।वैसे पत्रकारों के गुट भी अधिकांश चाटुकारिता वाली पत्रकारिता में सफल है ।5 से 10% पत्रकारिता के मिशन को मिशन मानकर जो पत्रकार निर्भीकता व निष्पक्षता से पत्रकारिता करते हैं ।उनको पत्रकारों सहित अधिकारियों व शासन के लोग उनका मनोबल बढ़ाने के उद्देश्य से कोई अहमियत नहीं देते ।उनकी गिनती मात्र खाना पूरी भर कोई राजनैतिक व प्रशासनिक अधिकारियों में होती है ।जिन का उदाहरण आज के बड़े पत्र समूह के शहरी आंचल के संवाद सूत्र और संवाददाताओं सहित जिला सूचना अधिकारी या सहायक सूचना निदेशक के यहां चयनित पत्रकारों की सूची से स्पष्ट होता है।
<no title>मिशन मानने वाले पत्रकार मजबूर, बेसहारा ,बेबस रोटी के चक्कर में सामंतवादी पूंजी पतियों के प्रकाशित समाचार पत्रों में जुड़े हैं।