आज का पत्रकार/कल का पत्रकार(और उनका इतिहासआज का पत्रकार/कल का पत्रकार(और उनका इतिहास)
(साहिबे आलम की क़लम से)
दोस्तो आज हमारे हिंदुस्तान में गली गली पत्रकारों की भर मार
जगह जगह आपको पत्रकार मिलेंगे। पर उन पत्रकारों में 80% लोगो को पत्रकार का इतिहास भी नही पता के पत्रकार के पत्रकार का क्या मतलब है और उनका काम क्या है। ऐसे कियू। ऐसे इसलिए के आज कल 60% पत्रकारों की शै्क्षिक योग्यता सिर्फ़ हाई स्कूल/इण्टरमिडीएट या कुछ भी नही है। मैं किसी पत्रकार पर उंगली नही उठा रहा। मैं ये भी नही कह रहा के वो पत्रकार नही अगर सम्पादक ने जिस वयक्ति का कार्ड जारी किया है और उसके पास अथर्टीलेटर भी मौजूद है तो वो पत्रकार है। पर ऐसे पत्रकारों को पत्रकारों का इतिहास क्या पता आज हम पत्रकारों के इतिहास के बारे में ही बात करेंगे। तो मैं आपको बताता हूँ के हिंदुस्तान के सबसे पहले पत्रकार कौन थे। हिंदुस्तान के सबसे पहले पत्रकार दिल्ली उर्दू अख़बार के एडिटर मौलवी मोहम्मद बाकर हिंदुस्तान के सबसे पहले पत्रकार थे। जिनको (1857) की जंगे आज़ादी की रिपोर्ट छापने के लिए अंग्रेज़ो ने तोप के मुंह से बांध कर गोला दाग कर शहीद कर दिया।
ऐसे जांबाज़ पत्रकार आज भी हमारे हिंदुस्तान में मौजूद है।
जो सच लिखने के लिए कभी पीछे नही हटते और उनके साथ भी यही हाल होता कभी उन पर गोली चलती है तो कभी वो बदमाशों के शिकार भी होते है।
पर वो अपना लक्ष्य कभी नही भूलते।
आज भी कुछ पत्रकार जो शाशन प्रशाशन को टक्कर देते है।
तो वहीँ कुछ पत्रकार थानों की रबड़ी भी खाते है। पर ये सब अपनी अपनी सोच के परे है।
कोई अपने आपको पत्रकार समझ कर फ़ख़्र महसूस करते है तो कुछ पत्रकार बनकर रूआब भी झाड़ते है।
आज मेरे इस लेख से मैं किसी पर उंगली नही उठा रहा। मैं सिर्फ़ पत्रकार को पत्रकारों का इतिहास बता रहा हूँ ताकि वो इस इतिहास से वंचित न रह सके। भारत देश में दिन प्रतिदिन बढ़ती बेरोजगारी से उत्पन्न दलालों को अधिकारी के पास बैठने के लिए किसी ऐसे साधन की आवश्यकता थी। जिस में रहकर वह आसानी से दलाली का कार्य को अंजाम दे सकें। पत्रकारों का कार्य सभी अधिकारियों से संपर्क बनाए रखना था। इन दलालों ने पत्रकारिता को ही दलाली के लिए आड़ बना कर पत्रकारिता जगत को पूर्ण रूप से बदनाम कर दिया। यही पत्रकारिता कभी अंग्रेजों के शासनकाल में अंग्रेज सरकार के पतन का कारण बनी। यही पत्रकारिता इस हिंदुस्तान के बड़े-बड़े घोटाले बाजों के पतन का कारण। बनी यही पत्रकार बड़े-बड़े गुरु घंटा लो के पतन का कारण बने। परंतु आज पत्रकारिता की स्थित देखकर सोए निष्पक्ष पत्रकार आहत हैं। क्योंकि उन्होंने कभी भविष्य में यह नहीं सोचा था। कि जिस पत्रकार का सम्मान शासन, प्रशासन से लेकर आम नागरिकों के दिलों में बसा हुआ था। उस पत्रकार का सम्मान जग से विलुप्त हो जाएगा। ऐसे पेशेवर लोगों से आहत निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकार जब इनके खिलाफ कलम उठाते हैं। तो यही दलाल जो बड़ी संख्या में हर जगह मौजूद है ।उनका विरोध कर उनको धमकाने ,फर्जी मुकदमे लिखाने व अन्य तरह से यातनाएं देने में भी पीछे नहीं रहते। निष्पक्ष पत्रकारिता जगत विलुप्त होने की कगार पर है ।बढ़ती बेरोजगारी में 1000 से 1500 खर्च कर हाथ पैर जोड़कर आसानी से किसी न किसी समाचार पत्र का कार्ड बनवाया जा सकता है।फिर जेब में कार्ड रखकर किसी भी सरकारी संस्थान में आप सुकून से बैठकर प्रतिदिन हजार से दो हजार, 5000 तक दलाली कर सकते हैं। अगर कोई अधिकारी पूछता है तो आप रौब के साथ बता सकते हैं। कि मैं पत्रकार हूं।
(पत्रकार साहिबे आलम)