मो०ताहिर अहमद वारसी की कलम से
लखनऊ:- पिछले माह प्रदूषण की भारी मार झेल चुके उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भारी यातायात और रोड अतिक्रमण के कारण राजधानी लखनऊ वासियों की जिंदगी से खिलवाड़ करने वाले मुद्दों से अलग आदेशों से किसानों पर तो पराली जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। ऐसा करने पर मुकदमा लिख जेल भेजने के आदेश जारी कर दिए गए। परंतु शहर के अंदर रोड पर अतिक्रमण करवाने वाले शासन प्रशासन के दलालों पर आज तक प्रदूषण एक्ट के अंतर्गत कोई कार्रवाई नहीं की गई। ना ही अवैध डग्गामार वाहनों और राजधानी की सड़कों पर चल रहे अवैध स्टैंडों पर आज तक कार्रवाई की गई ।यह सब सिस्टम का हिस्सा है। मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं परंतु एक सरकारी विभाग द्वारा सड़क पर अतिक्रमण या जनता को कानून सिखाने वालों द्वारा स्वयं कानूनों की धज्जियां उड़ा रहे हो। और किसी को दिखाई ना दे यह सोचनीय एवं दुर्भाग्यपूर्ण है। ना तो नगर निगम की अतिक्रमण हटाने वाली टीम को कोई अतिक्रमण दिखाई दिया। अगर दिखाई दिया तो कुछ माह पूर्व हुए अतिक्रमण टीम पर अतिक्रमण माफियाओं द्वारा गुडंबा थाना अंतर्गत हुए हमले से भय के कारण नगर निगम टीम कोई कार्रवाई करने में असमर्थ रही। नगर निगम की टीम पर हमले के बाद नगर निगम कर्मचारियों में भी रोष व्याप्त है। परंतु जनता को कानून का पाठ पढ़ाने वाले पुलिस के द्वारा ऐसा कृत्य या तो तानाशाही है। या आम जनजीवन से इन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। गुडम्बा इस्पेक्टर के मनमाने रवैया से थाने पर आने वाले पीड़ितों में तो रोष एवं भय व्याप्त है ।साथ ही इस प्रकार के सार्वजनिक कृत्य से थाना गुडम्बा के जिम्मेदारों की लापरवाही उजागर होती है। और पुलिस के तानाशाही रवैया के आगे अन्य विभाग भी असहाय एवं बेबस नजर आते हैं। राजधानी के गुडंबा थाने के गेट पर लखनऊ महमूदाबाद मार्ग है। थाना परिसर में सफाई दिखा कर गुड वर्क बटोरने वाली गुडम्बा पुलिस मुख्य मार्ग पर पकड़ी हुई गाड़ियों को खड़ा कर साइकिल ट्रैक सहित फुटपाथ और मुख्य मार्ग पर भी कब्जा किए हैं। जिससे राहगीरों को आवागमन में भारी दुश्मनी का सामना करना पड़ता है। परंतु पुलिस के आगे जब सरकारी विभाग बेबस है ।तो जनता जो पहले से ही रस्सी के साथ की कहावत के रूप से परिचित है। वह जाम से जूझना तो पसंद कर लेगी पर थाना प्रशासन के खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा सकती।