टॉप 10 थानों की लिस्ट मे रहे थाना गुडम्बा के जिम्मेदारों के बिगड़े बोल।

 


प्रार्थी काट रहे चक्कर।।


मो०ताहिर अहमद वारसी की कलम से


लखनऊ:- उत्तर प्रदेश मुखिया मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ द्वारा लगातार सख्त कानून व्यवस्था का दम भर रहे हैं। तो वहीं पुलिस के आला अधिकारी बेहतर कानून व्यवस्था की बात करते हैं। परंतु जमीनी हकीकत कुछ और ही है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में गुडंबा थाने का स्टॉप कानून व्यवस्था दुरुस्त करने में इतना व्यस्त है कि प्रार्थी व उसके परिजन महीनों थाने के चक्कर काट रहे हैं। थाना देश के टॉप टेन थानों की सूची में आने के बाद थाने पर तैनात अधिकारी व कर्मचारी जनता के नौकर नहीं माई बाप बन गए हैं। ना सभ्य भाषा, ना मिलने का सही समय, ना पीड़ित को दिलासा। जो व्यक्ति जितना बड़ा पावरफुल सोर्स लेकर थाने जाए उसकी सुनवाई उतनी तेजी से होती है। मामला गुडम्बा थाना अंतर्गत 8 अक्टूबर 2019 को आपसी लेनदेन या किसी अन्य प्रकरण को लेकर विजय प्रजापति s/o खुशीराम को गिरफ्तार किया गया और 9 अक्टूबर को 420 के मुकदमे में जेल भेजा गया। आरोपी किसी प्राइवेट एजेंसी में मुलाजिम होने के कारण आरोपी के मोबाइल में आवश्यक कागजात व मोबाइल नंबर होने के वजह से एजेंसी मालिक महिला जो कि आरोपी की पैरोकार भी थी। लगातार थाना गुडम्बा के चक्कर काटती रही कि आरोपी का मोबाइल लिखा पढ़ी के साथ उनके सुपुर्द कर दिया जाए। परंतु गुडम्बा पुलिस कानून व्यवस्था दुरुस्त करने में इतनी व्यस्त रही कि महिला घंटों थाने पर खड़ी रही थाना परिसर में कोई बैठने को कहने वाला तक नहीं मिला। मोबाइल वापसी की बात कौन सुनता। नवंबर माह आने के बाद आरोपी की पैरोकार महिला को पता चला कि मोबाइल कार्यालय में न होकर माल खाना में जमा है। फिर शुरू हुई माल खाने से मोबाइल निकालने की प्रक्रिया। कभी इस्पेक्टर साहब नहीं है, कभी दरोगा साहब नहीं हैं, तो कभी माल खाना इंचार्ज नहीं है। यह करते-करते नवंबर माह भी चला गया फिर शुरू हुआ दिसंबर। दिसंबर आते-आते थाना कर्मचारियों के नित नए हथकंडे देखने को मिले। परंतु आरोपी की पैरोकार मोबाइल प्राप्ति से कोसों दूर रही। आखिरकार थक हार कर मोबाइल की आस छोड़ पैरोकार ने आरोपी की कोर्ट से जमानत करवाई। और उससे मोबाइल में मौजूद कागज और मोबाइल नंबर मांगा। तब आरोपी से अपना मोबाइल पाने के लिए थाने के चक्कर लगाने लगा। फिर प्रतिदिन  वही पुराने कार्यालय से हथकंडे अपनाए गए। दिसंबर की 14 तारीख को इस्पेक्टर साहब की महान कृपा हुई कि उन्होंने विजय प्रजापति के मोबाइल इन अभद्र शब्दों के साथ वापस किए कि तुम तो अपराधी हो। जबकि मामला अभी न्यायालय में विचाराधीन है। आरोपी अभी अपराधी साबित नहीं हुआ है। परंतु गुडम्बा इस्पेक्टर की नजर में अदालत की प्रक्रिया से कोई मतलब नहीं है। या उनके इन शब्दों से किसी के मान सम्मान को ठेस लगती है या वह मानसिक रूप से प्रताड़ित होता है इसका कोई प्रभाव गुडम्बा इस्पेक्टर पर नहीं पड़ता। वह तो स्पष्ट कहते हैं कि हमारे दिल में अगर चोर होता तो मैं मोबाइल लिखा पढ़ी में दिखाता क्यों। अगर आपका मोबाइल जमा है तो आपको मिलेगा। खैर छोड़ो इन बातों को इन बातों का प्रभाव शासन प्रशासन पर नहीं पड़ता और विशेषकर पुलिस प्रशासन पर तो बिल्कुल नहीं। क्योंकि पुलिसिया तानाशाही से सभी परिचित हैं। परंतु इसका प्रभाव मित्र पुलिस की छवि को पूर्णत: समाप्त करता है। साथ ही शासन प्रशासन के जनता जनार्धन के सम्मान के प्रति खोखले वादों को भी दर्शाता है।


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