पत्रकार पर हमला और अभद्रता पर आखिर क्यों मौन लखनऊ पुलिस कमिश्नरी।
मो०ताहिर अहमद वारसी
लखनऊ:-कभी लोकतंत्र का चौथा स्तंभ का मौखिक खिताब पाने वाले । आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाले। अपनी कलम से अपनी पहचान बनाने वाले। भ्रष्टाचारियों की पोल खोल सबके सामने लाने वाले। रात दिन एक कर सब की बात सब तक पहुंचाने वाले पत्रकार ही जब पुलिस कमिश्नरी में न्याय के लिए आस लगाए बैठे रहेंगे तो आम जनता को न्याय की उम्मीद पुलिस कमिश्नरी में कैसे होगी। या यूं कहें कमिश्नरी पावर मिलने के बाद राजधानी पुलिस मगरूर हो गई है। इन्हें अपनी लालफीताशाही के आगे अब कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा। या यह सब राजनीतिक संरक्षण है ।इनमें से कुछ भी हो अगर न्याय भी पूंजीपतियों और सत्ताधारियों के लिए रिजर्व हो तो ऐसी पुलिस कमिश्नरी हमें नहीं चाहिए। लगभग बीते 1 माह पूर्व अलीगंज थाना अंतर्गत नवीन गल्ला मंडी चौकी क्षेत्र में न्यूज़ एजेंसी संवादाता ममता सिंह की सार्वजनिक बेज्जती कर उनके साथ छेड़छाड़ का प्रयास करने व क्षेत्रीय लोगों को धर्म विशेष के प्रति उकसाने वाले व्यक्ति के खिलाफ प्रार्थना पत्र दे कर ममता सिंह द्वारा अलीगंज स्पेक्टर फरीद अहमद से शिकायत की गई ।हफ्तों तक चौकी प्रभारी नेपाल सिंह आरोपी तक नहीं पहुंच सके। 1 सप्ताह बाद जब पत्रकार ने सूत्र के आधार पर आरोपी को पकड़वाया तो उसे आधे रास्ते से ही अनजाने कारण से छोड़ दिया गया। जिसके बाद ममता सिंह द्वारा उसी प्रार्थना पत्र की छाया प्रति अलीगंज एसीपी महोदय को दी गई ।उन्होंने कार्रवाई का आश्वासन दिया परंतु 1 माह का समय बीत जाने के बाद भी महिला पत्रकार से अभद्रता करने वाला खुलेआम घूम कर अपनी बहादुरी के कसीदे लोगों को सुना रहा है ।ऐसा संभव हुआ लखनऊ की पुलिस कमिश्नरी में इस का पूर्व श्रेय भी अलीगंज पुलिस को ही जा सकता है ।खबर चलने के बाद भी अलीगंज स्पेक्टर फरीद अहमद से कोई पूछने वाला नहीं कि उस घटना में अब तक क्या कार्रवाई हुई या नहीं ।कमिश्नरी का पावर इस पावर के चलते 10 मार्च को होली के दिन राष्ट्रीय युवा वाहिनी के युवा राष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित जितेंद्र शर्मा के घर उनकी अनुपस्थिति में कुछ दबंगों ने हमला कर दिया था ।जितेन शर्मा की पत्नी ने जब फोन पर घटना की जानकारी अपने पति जितेंद्र शर्मा को दी । तो वह अपने दोस्त पत्रकार शुभम गुप्ता जो एक दैनिक समाचार पत्र से संवाददाता है के साथ घर पहुंचे ।तो दबंगों ने पत्रकार पर हमला कर दिया जिसमें पत्रकार शुभम गुप्ता के सर में गंभीर चोट आई ।जिसके बाद थाना मड़ियांव पुलिस द्वारा पत्रकार की डॉक्टरी करवाई गई जिसमें पत्रकार के सर में 5 टांके लगे ।जिस के बाद मड़ियांव थाने पर मुकदमा 323 ,354, 392, 452 में दर्ज होने के बाद भी आरोपी 5 दिन बाद भी अपने क्षेत्र में खुलेआम घूम रहे हैं ।पीड़ित पत्रकार पर जनमाध्यम से दबाव बनाया जा रहा है ।कि तुम्हें फर्जी पत्रकार साबित कर तुम्हारे खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर दी जाएगी ।पत्रकार भयभीत होकर अपने कार्यालय में बैठने लगा। यह सब संभव हुआ लखनऊ की पुलिस कमिश्नरी में इस प्रकार के कर्मचारियों से ना कानून व्यवस्था सही हो सकती है ।और ना जनता का विश्वास जीता जा सकता है ।हां ऐसी घटनाओं से पुलिस और पत्रकारों का जो आपसी सहयोग बना था उसे समाप्त जरूर किया जा सकता है ।और ऐसी घटनाओं में लापरवाही कर लखनऊ पुलिस बड़ी घटनाओं को बढ़ावा भी दे सकती है ।पुलिस के इस कृत्य से अलीगंज और मड़ियाओं पुलिस की कार्यशैली जरूर शंका के घेरे में आती है कि आखिर क्यों पत्रकार पर हमला और महिला पत्रकार के साथ अभद्रता पर लखनऊ पुलिस मौन है ?क्या पुलिस पर राजनीतिक दबाव है? या पुलिस द्वारा लेनदेन कर मामला रफा-दफा कर दिया गया? या सत्य लिखने वाले पत्रकारों पर हमला करने वालों को पुलिस संरक्षण देती है ?यह तमाम बातें आकर पुलिस की कार्यशैली को शंकित करती हैं।