आखिर क्यों पड़ी चटुकारिता की आवश्यकता,  आखिर क्यों समाप्त हो रहे निष्पक्ष समाचार पत्र। 

पत्रकारों को गाली देने वाले गौर से पढें। 


आखिर क्यों पड़ी चटुकारिता की आवश्यकता। 


आखिर क्यों समाप्त हो रहे निष्पक्ष समाचार पत्र।


पत्रकारिता जनता और शासन प्रशासन की आवश्यकता है। पहले छोटे छोटे समाचार पत्रों द्वारा अपने क्षेत्रों की आवाज उठा कर शासन प्रशासन तक पहुचाया जाता था परंतु प्रिन्ट मीडिया मात्र कुछ बडे पूजिपतियों के बड़े अखबारों तक सिमट गई ।छोटे समाचार पत्रों को न कोई खरीदने वाला बचा न ही चंदा देकर देश व समाज को उजागर करने मे सहयोग करने वाला। धीरे धीरे जनता का मोह भंग होने के बाद समाचार पत्र चलाना। इतना दूभर हो गया कि मजबूरन पत्रकारों को पूजीपतियों व राजनेताओ,अधिकारियों की दलाली और चटुकारिता करनी पड़ी। धीरे धीरे आर्थिक तोल से कमजोर समाचार पत्रों एंव पत्रकारों को भ्रष्टाचारी आसानी से डरा धमका कर सच लिखने से रोक लेते है। और अगर फिर भी नही रुका तो एक या दो मुकदमें के बाद तो वो मात्र मुकदमों तक सीमित रह कर स्वय अपनी लडा़ई लडने मे फंस जाता है। शासन द्वारा भी छोटे बैनरों को कोई खास सहायता न मिल पाने के कारण निष्पक्ष पत्रकारिता धीरे धीरे समाप्ती की ओर अग्रसर है। निष्पक्ष पत्रकारिता को समाप्त करने में जितना देश की सरकारों का हाथ है उस से कही ज्यादा हाथ जनता का है जिन्होने रंगबिरंगी बडे़ बडे़ अखबार खरीदना शुरू कर दिया जो मात्र पूजिपतियों और सरकार के पैसे से चलते है। उन न्यूज़ पेपरों की ओर देखना भी लोग नही पसंद करते जो क्षेत्रीय है। जब कि आवश्यकता पड़ने पर यही छोटे बैनर ही जनता की आवाज उठाने का प्रयास करते हैं। परंतु धीरे धीरे स्थित यहाँ तक आ गई कि छोटे बैनरों की खबरो पर अधिकारी तक सुनवाई नहीं करते जब तक पैरोकारी कर सँम्पादक द्वारा ऊपर से आदेश न कराया जाए। भ्रष्टाचारियों मे कुछ बड़े अखबार छोड़ कर क्षेत्रीय व जिला स्तरीय समाचार पत्रों का भय समाप्त हो चुका है। ऐसी भयावह परिस्थिती मे निष्पक्ष पत्रकारिता या निष्पक्ष समाचार पत्र चलाकर कौन दुश्मनी लेकर दाने दाने की मोहताजी लेगा ।इस से बेहतर है किसी विभाग, किसी नेता, या दबंगों के साथ मिल कर काम करते रहो। समाचार पत्र भी चले गा, जेब खर्च भी चले गा। आवश्यकता पड़ने पर शासन भी सुनेगा।बस आप का जमीर मर जाएगा ।पत्रकारों को गाली देने वाले गौर से पढें। 


आखिर क्यों पड़ी चटुकारिता की आवश्यकता। 


आखिर क्यों समाप्त हो रहे निष्पक्ष समाचार पत्र। 


पत्रकारिता जनता और शासन प्रशासन की आवश्यकता है। पहले छोटे छोटे समाचार पत्रों द्वारा अपने क्षेत्रों की आवाज उठा कर शासन प्रशासन तक पहुचाया जाता था परंतु प्रिन्ट मीडिया मात्र कुछ बडे पूजिपतियों के बड़े अखबारों तक सिमट गई ।छोटे समाचार पत्रों को न कोई खरीदने वाला बचा न ही चंदा देकर देश व समाज को उजागर करने मे सहयोग करने वाला। धीरे धीरे जनता का मोह भंग होने के बाद समाचार पत्र चलाना। इतना दूभर हो गया कि मजबूरन पत्रकारों को पूजीपतियों व राजनेताओ,अधिकारियों की दलाली और चटुकारिता करनी पड़ी। धीरे धीरे आर्थिक तोल से कमजोर समाचार पत्रों एंव पत्रकारों को भ्रष्टाचारी आसानी से डरा धमका कर सच लिखने से रोक लेते है। और अगर फिर भी नही रुका तो एक या दो मुकदमें के बाद तो वो मात्र मुकदमों तक सीमित रह कर स्वय अपनी लडा़ई लडने मे फंस जाता है। शासन द्वारा भी छोटे बैनरों को कोई खास सहायता न मिल पाने के कारण निष्पक्ष पत्रकारिता धीरे धीरे समाप्ती की ओर अग्रसर है। निष्पक्ष पत्रकारिता को समाप्त करने में जितना देश की सरकारों का हाथ है उस से कही ज्यादा हाथ जनता का है जिन्होने रंगबिरंगी बडे़ बडे़ अखबार खरीदना शुरू कर दिया जो मात्र पूजिपतियों और सरकार के पैसे से चलते है। उन न्यूज़ पेपरों की ओर देखना भी लोग नही पसंद करते जो क्षेत्रीय है। जब कि आवश्यकता पड़ने पर यही छोटे बैनर ही जनता की आवाज उठाने का प्रयास करते हैं। परंतु धीरे धीरे स्थित यहाँ तक आ गई कि छोटे बैनरों की खबरो पर अधिकारी तक सुनवाई नहीं करते जब तक पैरोकारी कर सँम्पादक द्वारा ऊपर से आदेश न कराया जाए। भ्रष्टाचारियों मे कुछ बड़े अखबार छोड़ कर क्षेत्रीय व जिला स्तरीय समाचार पत्रों का भय समाप्त हो चुका है। ऐसी भयावह परिस्थिती मे निष्पक्ष पत्रकारिता या निष्पक्ष समाचार पत्र चलाकर कौन दुश्मनी लेकर दाने दाने की मोहताजी लेगा ।इस से बेहतर है किसी विभाग, किसी नेता, या दबंगों के साथ मिल कर काम करते रहो। समाचार पत्र भी चले गा, जेब खर्च भी चले गा। आवश्यकता पड़ने पर शासन भी सुनेगा।बस आप का जमीर मर जाएगा ।


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