पत्रकार उत्पीड़न के खिलाफ पत्रकार हुए एक जुट, पुलिस गुडवर्क कवरेज का किया बहिष्कार।

मो० ताहिर अहमद वारसी की रिपोर्ट


लखनऊ:- लखनऊ में पुलिस कमिश्नरी लागू होने के बाद पुलिस का पावर बढ़ने से बौखलाए भ्रष्टाचारी कर्मचारियों ने अपने पावर का गलत उपयोग करते हुए। पत्रकारों पर ही रौब गांठना शुरू कर दिया।जिस के बाद राजधानी के ट्रांस गोमती क्षेत्र में पत्रकार उत्पीड़न के कई मामले सामने आए जिसमें या तो पुलिस की उदासीनता से अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं या पुलिस स्वय पत्रकारों को प्रताड़ित कर रही है ।एक अध में मामला तूल पकड़ता देख पुलिस के उच्च अधिकारियों ने दिखावा मात्र कार्रवाई करते हुए कर्मचारी को लाइन हाजिर कर दिया।जिस के कारण पुलिसिया मनोबल बढ़ कर आए दिन पत्रकारों से अभद्रता की खबरें आने के बाद क्षेत्रीय व ग्रामीण पत्रकारों ने पुलिस गुडवर्क कवरेज का बहिष्कार कर दिया है। पत्रकारों की मांग है कि जब तक पत्रकारों से अभद्रता करने वालों के खिलाफ मुकदमा लिख जेल नहीं भेजा जाएगा तब तक पुलिस गुडवर्क पर कोई पत्रकार नहीं जाएगा। पत्रकारों ने बहिष्कार का विरोध शोशल मीडिया पर डी पी लगाकर दर्ज कराया पत्रकारों का कहना है कि जैसे ही कोरोना महामारी से देश की जनता को निजात मिलेगी हम अपनी बात को लेकर शासन, प्रशासन तक जाएंगे। निष्पक्ष पत्रकारों को कभी गालियां मिलती है तो कभी धमकियां तो कभी फर्जी मुकदमे तो कभी अभद्रता का सामना करना पड़ता है। जिसके बाद थानों में तहरीर लेकर उन्हे विवेचना के नाम पर महीनों टहलाया जाता है।जो बहुत दुखःद है।हम पत्रकार रात दिन खबर कवरेज कर देश और समाज के लिए कार्य करते है।तो कुछ भ्रष्ट कर्मचारी अपनी भड़ास चालान काट कर ही पूरा कर लेते हैं।हम पत्रकारों को न तो संस्थान की ओर से कोई आर्थिक सहायता मिलती है और न शासन, प्रशासन से ऐसे में हम चालान भरने का पैसा कहां से लाएं।इन्ही मुद्दो को लेकर राजधानी के पत्रकारों में रोष है ।देखना ये होगा कि क्या पुलिस प्रशासन द्वारा पत्थरों की मांगों पर कोई सुनवाई होती है। सुनवाई ना होने की दशा में क्या पत्रकार अपनी मांगों को लेकर शासन,प्रशासन तक जाएंगे।परंतु छुट पुट घटनाओं को बड़े गुडवर्क की तरह पेश करवाने वाली लखनऊ पुलिस पर इस बहिष्कार का क्या प्रभाव पड़ता है


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